04 अगस्त 2023, सुबह 09:18
संत सियाराम बाबा : भारत में ऐसे कई संत हुए हैं जिनके जीवन की कोई सानी नहीं है। लोगों को सही दिशा दिखाने वाले अधिकतर संत नदी के किनारे ही मिलते हैं। संतों ने योग और ध्यान के बल पर चमत्कार करके कई बार पूरे विश्व को हैरान किया है। अपनी कठिन साधना के बल पर संतों ने प्रकृति के नियमों को नतमस्तक होने पर मजबूर किया है। आज जिस संत के बारे हम आपको बताने वाले हैं उन्होंने 12 वर्ष तक मौन धारण किया था और जब 12 वर्षों बाद उनके श्रीमुख से जो पहला शब्द निकला वो था “सियाराम” और तभी से उनका नाम पड़ गया “संत सियाराम बाबा”.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो संत सियाराम बाबा का जन्म मुंबई में हुआ था उनकी उम्र 109 साल है। हालांकि कई लोग उनकी उम्र 80 बताते हैं तो कोई 130. बाल अवस्था में उन्हें एक संत मिले जिनके संपर्क में आने के बाद भक्ति का ऐसा रस चढ़ा कि उन्होंने वैराग्य धारण कर घर का त्याग दिया। उसके बाद संत सियाराम बाबा ने कुछ समय तक हिमालय में तपस्या की। इसके बाद का उनका जीवन पूरी तरह से रहस्यमई है। संत सियाराम बाबा आज से 72 साल पहले 1951 में मध्य प्रदेश के खरगोन के भट्यान गांव में नर्मदा किनारे आकर बस गए थे और तब से आज तक वे इसी जगह पर रहकर राम नाम की धारा बहा रहे है।
‘संत सियाराम बाबा’ भगवान राम और हनुमान के परम भक्त हैं। उनके आस-पास रहने वाले लोग बताए हैं कि बाबा रोजाना 21 घंटे रामायण का पाठ करते हैं जीवन के 100 साल का लंबा पड़ाव पार करने के बावजूद उन्हें आज भी चश्मा नहीं लगा है। राम के प्रति उनकी भक्ति देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। उन्होंने एक समय व्रत धारण किया था यह मौन 12 वर्षों तक चला था। एक भी शब्द का उच्चारण किये बिना 12 साल तक सियाराम बाबा ने राम की भक्ति की और जब 12 वर्षों बाद उनके श्रीमुख से जो पहला शब्द निकला वो था “सियाराम” और तभी से उनका नाम पड़ गया “संत सियाराम बाबा”.
यही नहीं उन्होंने इसके अलावा 10 वर्षों तक खड़े रहकर खड़े रहकर खड़ेश्वर तप किया। तपस्वियों की दुनिया में यह सबसे मुश्किल तपस्या होती है। इसमें विश्राम से लेकर सभी काम खड़े होकर पड़ते है। एक समय की बात है जब मां नर्मदा अपने उफान पर थी इलाके में बाढ़ आ गयी थी, नदी का पानी बाबा की नाभि तक आ पंहुचा था लेकिन तब भी बाबा अपनी तपस्या से हिले नहीं। सियाराम बाबा को इसकी शक्ति कठिन साधना और योग के बलबूते पर ही मिली।
संत सियाराम बाबा के आश्रम में हमेशा आपको भक्त मिलेंगे। लोग बस एक बार बाबा के दर्शन करना चाहते हैं ताकि वे अपने आप को सौभाग्यशाली मान सके। कोई भी मौसम हो चाहे बारिश, गर्मी, या फिर ठिठुरा देने वाली सर्दी, सियाराम बाबा अपने शरीर पर सिर्फ एक ही वस्त्र धारण करते हुए मिलेंगे और वो है लंगोट। संत सियाराम बाबा ने अपनी साधना के दम पर अपने शरीर को इस तरीके से ढाल लिया है कि उनके शरीर पर किसी ऋतू का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
संत सियाराम बाबा का एक नियम है कि वे दान में 10 रूपये से ज्यादा नहीं लेते हैं। बावजूद इसके संत सियाराम बाबा अब तक कई मंदिरों के लिए करोड़ों रुपये का दान कर चुके हैं। ख़बरों की माने तो उन्होंने अपने इलाके में नर्मदा घाट पर बारिश से बचने के लिए शेड बनवाया था जिसमें उन्होंने 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे। इसके अलावा भी वे कई धर्मशालाएं और मंदिरों में दान करते है। भक्तों की चढ़ाई हुई राशि को वे अपने पास नहीं रखते हैं।
देश विदेश से लोग नर्मदा किनारे बाबा के आश्रम में पहुंचते है सिर्फ और सिर्फ बाबा की एक झलक पाने ले लिए। विदेशों से भी लोग यहां आते हैं। कहते हैं मानसून के समय में इलाके के लोग यहाँ से चले जाते है क्यों की बारिश के समय कई बार गाँव नदी में सामने का खतरा रहता है, लेकिन बाबा यहीं निवास करते हैं। कहने वाले कहते हैं कि यही वो समय होता है जब सियाराम बाबा मां नर्मदा से बातें करते हैं। सियाराम बाबा का ये आश्रम आज मालवा-निमाड़ के इलाके का लोकप्रिय तीर्थ बन गया है। यहां लोग असंख्य प्रश्नों के साथ पहुंचते है लेकिन बाबा कुछ कहते नहीं है। सियाराम बाबा कष्ट में डूबे लोगों का मार्ग अपने मौन के पुल से बनाकर ईश्वर तक पहुंचते हैं।
सियाराम बाबा के पैर में एक घाव है लोग कहते हैं कि 20 सलों से ज्यादा का समय हो चूका है लेकिन यह घाव बाबा का पीछा नहीं छोड़ रहा है। यही कारण है कि जब भी आप संत सियाराम बाबा के दर्शन करेंगे या उनकी तस्वीर देखंगे तो आपको उनके पैर हमेशा सफ़ेद पट्टियों से जकड़े हुए दिखेंगे।
संत सियाराम बाबा का आश्रम मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के गोगांवा तहसील के भट्यान गांव में स्थित है। यह खरगोन जिला मुख्यालय से 65 किमी की दूरी पर है। अगर आप इंदौर से खरगोन जा रहे है तो आपको 150 किमी की दूरी तय करना पड़ेगी। यहां पहुंचने के लिए आपको इंदौर से कई बसें मिल जाएंगी। बतादें कि मालवा-निमाड़ का बड़ा इलाका रेलवे नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है इसलिए यहां ट्रेन नहीं जाती है। आपको केवल और केवल बसों का सहारा लेना पड़ेगा। इसके अलावा आप प्राइवेट कार से भी यहां पहुंच सकते हैं।