25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीनराष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधान मन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी।

आपातकाल लगाने का अंतिम निर्णय कांग्रेस नेता, स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिस पर भारत के राष्ट्रपति ने सहमति व्यक्त की थी, और उसके बाद कैबिनेट और संसद द्वारा (जुलाई से अगस्त 1975 तक) इसकी पुष्टि की गई थी, और इस तर्क पर आधारित था कि वहाँ भारतीय राज्य के लिए आसन्न आंतरिक और बाहरी खतरे थे। आपातकाल की विरासत विवादास्पद बनी हुई है - आज तक - और इसे अक्सर भारत में लोकतंत्र का सबसे काला चरण कहा जाता है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने परपुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारयण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा