Lucknow : मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के अज़ीम शायरों में से एक हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जो ग़ालिब के नाम से नावाक़िफ़ होगा। हालांकि मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपनी शायरी में फ़ारसी का बहुत प्रयोग किया इसलिए वह आम-जम की समझ से दूर रहे लेकिन तब भी दिल के क़रीब रहे।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
पढ़िए ग़ालिब की ये कालजयी ग़ज़ल……
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े-ग़ुफ़्तगू क्या है
न शोले में ये करिश्मा, न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़े-तुंद-ख़ू क्या है
आज एक अजीम शायर ने जन्म लिया था जिसे हम गालिब के नाम से जानते हैं। मियां, 220 साल बाद भी हजारों लोग इनके फैन हैं और आगे भी रहेंगे। किसी भी अदीब के लिए यह बड़े फख्र की बात है। सच तो यह है कई बातों के लिए हज़ारों और लाखों लोगों पर गालिब की उधारी है। यह उधार जिंदगी के हर बढ़ते पाये के साथ दोगुना होता जाएगा।