बद्रीनाथ की पूजा और अखंड ज्योति के लिए प्राचीन काल से ही सनातन धर्म के विधि-विधान के साथ तिल का तेल निकालने की परंपरा रही है। तिल के तेल को टिहरी राजमहल में डिमरी समाज की सुहागिन महिलाएं सिल-बट्टे और मूसल से निकालती हैं।
तिल से तेल निकालने की प्रक्रिया 400 साल से आज भी टिहरी के नरेंद्र नगर के राजमहल में निभाई जा रही है। तेल निकालने की परंपरा के साथ ही बद्रीनाथ के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इससे पहले 2 वर्ष कोरोना वायरस की वजह से बद्रीनाथ धाम यात्रा नहीं चल पाई थी। संभावना है कि इस वर्ष यात्रा चरम पर रहेगी। वहीं, हजारों की संख्या में यात्री भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने के दौरान बद्रीनाथ धाम में मौजूद रहेंगे, इसलिए जोशीमठ प्रशासन अभी से तैयारियां कर रहा है।
इस दौरान बिजली ,पानी, स्वास्थ्य और साफ-सफाई को लेकर भी प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। आने वाले समय में उत्तराखंड सरकार भी यात्रा व्यवस्थाओं को लेकर तैयारियां शुरू करेगी, ताकि कोई अव्यवस्था ना रहे।