अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त और सबसे प्राचीनतम,सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में मान्य और प्रतिष्ठित भाषा देववाणी संस्कृत का अपने ही देश में ऐसा अनादर दुखद और अक्षम्य है। संस्कृत ऋषियों की शान,सनातन की जान और भारत का मान है।
देववाणी संस्कृत को यथोचित सम्मान और उचित स्थान मिलना ही चाहिए। दुनिया की सभी भाषाओं की जननी को अपने वजूद के लिए लड़ना पड़ रहा है।
अफसोस है कि दुनिया संस्कृत को कंप्यूटर कोडिंग में इस्तेमाल का सोच रही है और हम संस्कृत के विद्वानों को अनपढ़ साबित करने में व्यस्त हैं।
धीरे धीरे जिस तरह से भारत में संस्कृत भाषा को समाप्त किया जा रहा है और विदेशों में संस्कृत को धारण किया जा रहा है वह वक्त दूर नही जब कोई विदेशी हमें संस्कृत सिखाएगा |
यह सब मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि की कभी भारत संस्कृत का केंद्र रहा था और उसी भारत में संस्कृत की उपेक्षा हो रही है।
यह हमें बर्दाश्त नही है। संस्कृत को भारतवर्ष में मान्य करना ही होगा।
जिन छात्रों ने अपना घर बार छोड़कर गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण की आज उन छात्रों को अनपढ़ घोषित कर दिया गया बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है इसलिए साथियों साथ दो संस्कृत को बचाओ संस्कृत पर प्रहार हो रहा हैl
काशी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां अमान्य क्यों ? जबकिवहीं मदरसों में पढ़ने वालों को सेना में धर्म गुरु की भर्तियां हो रही है l
डीडी उर्दू में है,अंग्रेजी में है तो डीडी संस्कृत क्यों नहीं अपने ही देश में पहले हमें समानता का अधिकार तो मिलना ही चाहिए।
सबसे प्राचीन भाषा, देव भाषा समस्त भाषाओं की जनानी संस्कृत को सर्व श्रेष्ठ समान मिलना चाहिए।
क्योंकि बिना संस्कृत के हम ना गीता पढ पायेंगे और ना ही रामायण। इसलिए हमारा अधिकार बनता है अपना हक मांगने के लिए।
हम भारतीय सेना का सम्मान करते हैं और भारतीय सेना पर हमें गर्व भी है l
परन्तु भारतीय सेना द्वारा उत्तर प्रदेश के संपूर्णानंद विश्व विद्यालय की संस्कृत आचार्य और संस्कृत शास्त्री की डिग्रियां अमान्य करना देश की सभ्यता और संकृति से खिलवाड़ है l
देव वाणी को अमान्य घोषित करने वाले कौन हैं ?
इनकी पहचान जरूरी है l
देश की सेना में ऐसे तुच्छ सोच वाले लोग उच्च पदों पर आसीन होकर कहीं देश के लिए ही खतरा ना बन जाएं l
देववाणी संस्कृत के साथ ये घोर अन्याय सरासर गलत है।
होना तो यह चाहिए कि CBSE की तर्ज पर भारत में “केंद्रीय वैदिक शिक्षा बोर्ड” और “केंद्रीय संस्कृत शिक्षा बोर्ड” बने।
ये बोर्ड यदि भारत में नहीं होंगे तो कहाँ होंगे?
अतः हम संस्कृत प्रेमी माननीय उच्चतम न्यायलय,उच्च न्यायलय, राष्ट्रपति महोदय एवं भारत सरकार से मांग करते हैं कि हमारी उक्त बातों को संज्ञान में लेकर संस्कृत के साथ न्याय करें।
अन्यथा हम सनातन धर्मी,संस्कृत प्रेमी जन आन्दोलन करने हेतु , अपना हक मांगने हेतु,संस्कृत के सम्मान हेतु लोक मर्यादा को त्यागकर अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु अग्रसर होंगे।
आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”