उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद से बीजेपी को लगातार झटके पर झटके लगते जा रहे हैं। अब महज चुनाव से ठीक 27 दिन पहले नेता राजनीतिक गोटियां सेट करने के लिए पाला बदलते हुए नजर आ रहे हैं। पिछले दो दिनों में यूपी सरकार के 2 मंत्रियों और कुछ विधायकों ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है।
बीते दिनों योगी सरकार के मंत्री और बड़े क्षेत्रीय क्षत्रप स्वामी प्रसाद मौर्य समेत 5 विधायकों ने भाजपा छोड़ दी। फिर बुधवार को एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने भाजपा छोड़ने का एलान किया, गौरतलब है कि ये सभी सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं। खबर के मुताबिक, इन विधायकों ने स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में बीजेपी को छोड़ा है।
मालूम हो कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया है। अब ब्रजेश प्रजापति, रोशनलाल वर्मा और भगवती सागर भी सपा का ज्वॉइन करेंगे। इस्तीफे दिए नेता ने योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए।
मुकेश वर्मा ने इस्तीफे में कहा है कि योगी सरकार ने 5 साल के कार्यकाल के दौरान दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं और जनप्रतिनिधियों को कोई तवज्जो नहीं दी गई और उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। मुकेश वर्मा ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह की तरह प्रदेश सरकार पर दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और छोटे-लघु और मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षा की गई है।
यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है, मैं नहीं जानता हूं। उनसे अपील है कि बैठकर बात करें।
जल्दबाजी में लिए हुए फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं। बीजेपी छोड़ रहे मंत्रियों और विधायकों की भाषा एक जैसी होने के साथ-साथ एक बात और भी मिल रही है कि ज्यादातर ओबीसी समुदाय से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा जिन तीनों मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है, वो 2017 के चुनाव में बसपा से बीजेपी में आए थे।
बीजेपी छोड़ने वाले विधायक भी स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी माने जाते हैं, जिसके चलते साफ जाहिर होता है कि इन सभी नेताओं के इस्तीफों की भाषा एक ही जगह लिखी गई है। यूपी में बीजेपी की ओबीसी राजनीति का किला ध्वस्त करने का सोचा-समझा प्लान माना जा रहा है।. इस्तीफे में जिस तरह से योगी सरकार और बीजेपी पर दलित, पिछड़ों, वंचितों को लेकर आरोप लगाए गए है।
इससे साफ है कि इस्तीफे के जरिए ओबीसी और दलित वोटों को सियासी संदेश देने की रणनीति है। बहरहाल ऐसी ही कुछ भगदड़ 2019 लोकसभा चुनाव से पहले देखने को मिली थी, जब टिकट कटने या कद के हिसाब से अहमियत ना मिलने पर तमाम BJP नेताओं और सांसदों ने मोदी सरकार पर दलित, पिछड़ा और किसान विरोधी होने का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी थी।
आपको बता दें, इन सभी नेताओं ने तुरंत ही कोई ना कोई विपक्षी पार्टी (अधिकतर ने सपा) ज्वाइन की और 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा, ये सभी नेता अपने क्षेत्रों में जहां से BJP से 2014 में चुनकर आए थे, वहीं से BJP के विरोध में लड़ने पर 2019 में बुरी तरह से चुनाव हारे और लगभग राजनीतिक परिदृश्य से गायब से हो गए।