उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों की तस्वीर अब साफ हो चुकी है। यूपी में दोबारा बीजेपी सत्ता में वापसी करी है और योगी आदित्यनाथ लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनें। बीजेपी ने इस जीत के साथ कई मिथकों को तोड़ दिया है।
यूपी में मुख्यमंत्रियों के लिए नोएडा एक ‘अशुभ’ का संकेत बन गया था। ऐसा मन में बिठा लिया गया था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा जाएगा, उसकी कुर्सी चली जाएगी। अखिलेश यादव पांच साल सीएम रहे, लेकिन नोएडा आने की हिम्मत नहीं जुटाई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी सीएम बनने का मौका मिला था, लेकिन वह भी नोएडा से डरे-डरे रहकर ही सीएम पद से चले गए।
लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कभी भी इन कही-सुनी कहानियों पर गौर नहीं किया और जब भी जरूरत पड़ी उन्होंने ताल ठोककर नोएडा का दौरा किया। बता दें कि जब 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे तो उनसे नोएडा जाने को लेकर सवाल किया गया था, तो उन्होंने कहा था कि वो ये सब नहीं मानते हैं और वो इस मिथक को तोड़ के दिखाएंगे। और हुआ भी कुछ ऐसा।
जानकारी के अनुसार, अपने पांच साल के कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ करीब 20 बार से अधिक नोएडा आए। जबकि अखिलेश यादव अपने 5 साल के कार्यकाल में ऐसा करने से लगातार बचते रहे.खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए गोरखपुर मठ के महंत मुख्यमंत्री योगी की जमकर तारीफ की थी।
1988 में वीर बहादुर सिंह नोएडा आए और उनकी कुर्सी चली गई। फिर 1989 में नारायण दत्त तिवारी भी नोएडा के सेक्टर 12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन करने पहुंचे थे और उनकी अगुवाई में कांग्रेस ऐसी हारी की आजतक हारती ही जा रही है। बीजेपी के दिवंगत नेता कल्याण सिंह और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी यह दर्द झेल चुके हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 से 2012 के अपने पांच साल के कार्यकाल में दो-दो बार इस मिथक को तोड़ने का प्रयास जरूर किया था, लेकिन जब 2012 में उनकी कुर्सी चली गई तो यह अंधविश्वास एक तरह से पक्का हो गया था। लेकन, योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया है कि उन लोगों के साथ महज ऐसा संयोग की वजह से हुआ था, नोएडा किसी भी दृष्टि से मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ‘अशुभ’ नहीं है।
मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ 15 साल बाद ऐसे मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने सीएम रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा है। योगी की जीत के साथ नोएडा पर लगा सियासी ‘अपशकुन’ का दाग भी आज मिट गया।