चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो चुकी है. 8 नवंबर से इस पर्व की शुरुआत हो चुकी है। और 10 नवंबर के दिन यानी बुधवार को छठ पर्व का मुख्य दिन है। इस दिन व्रती महिलाएं डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं। और 11 नवंबर के दिन सुर्योदय के समय उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा।
चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में षष्ठी तिथि का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। छठ की पूजा में खरना की पूजा के बाद व्रती लगातार 36 घंटों तक का निर्जला व्रत रखती हैं। इस पूजा में स्वच्छता का खास ख्याल रखा जाता है। मान्यता है कि छठ पूजा की उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है और महाभारत में भी इस पूजा का उल्लेख मिलता है।
आज बुधवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। गुरुवार को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महापर्व छठ संपन्न होगा।ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय शाम में 4:30 से 5:30 बजे के बीच और उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय सुबह 6:41 बजे से है।
शाम में अर्घ्य गंगा जल से दिया जाता है। जबकि उदयगामी सूर्य को अर्घ्य कच्चे दूध से देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि शाम के समय सूर्य देवता अपनी अर्धांगिनी देवी प्रत्युषा के साथ समय बिताते हैं। यही कारण है कि छठ पूजा में शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।यूपी, बिहार और झारखंड आदि में छठ पर्व को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व के मुख्य दिन आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. आइए डालते हैं एक नजर।
छठ पर्व पर एक बात का एक ओर ध्यान रखें कि सूर्य अर्घ्य देने के लिए प्लास्टिक, चांदी या स्टील के बर्तन का इस्तेमाल न करें। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि घर में प्रयोग होने वाले गिलास और लोटा आदि को भी इस दौरान इस्तेमाल न करें। इस दिन सात्विकता का भी विशेष ध्यान रखें। इसलिए इस दिन घर में किसी भी प्रकार से तामसिक गुणों वाली चीजों का इस्तेमाल करने से परहेज करें।
और न ही ऐसी चीजों को घर में रखें। यहां तक कि छठ के दौरान घर में लहसुन और प्याज को भी बाहर कर दें। छठ पूजा के समापन से पहले किसी भी व्यक्ति को प्रसाद झूठा न करने दें। कार्तिक शुक्ल की सप्तमी तिथि के दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। इसलिए इससे पहले न कुछ खाना चाहिए और न ही पीना।