बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में याचिका देकर कहा था कि देश के 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वहां हिंदुओं की जगह स्थानीय बहुसंख्यक समुदायों को ही अल्पसंख्यक हितैषी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य सरकारें भी अपने यहां की अल्पसंख्यक आबादी की पहचान कर सकती है और उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि किसी राज्य में कोई समुदाय धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक है तो उसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है। बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2020 में याचिका दायर की गई थी जिसपर केंद्र ने जवाब दिया है।
अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा था कि 2011 की जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और इन राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2002 के टीएमए पई के फैसले में निर्धारित सिद्धांत के अनुसार अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए।
अश्विनी उपाध्याय ने 2017 में सबसे पहले अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए उचित दिशा-निर्देशों के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था ताकि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में घोषित किया जाए, जहां उनकी संख्या बहुसंख्यक समुदाय से कम थी।
1993 की केंद्रीय अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि जैन समुदाय को भी 2014 में अल्पसंख्यकों की सूची में जोड़ा गया था, लेकिन कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक होने के बावजूद सूचि में शामिल नहीं हैं।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में असली अल्पसंख्यक हैं, वो अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों का प्रशासन स्थापित नहीं कर सकते, यह सही नहीं है।
क्योंकि समबन्धित राज्य के नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान होने के रूप में प्रमाणित कर सकते हैं। बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने हिंदुओं को अल्पसंख्य का दर्जा वाली ख़बर की क्लिपिंग के साथ ट्वीट किया है, “हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा.” सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर उपाध्याय ने ही जनहित याचिका दायर की थी ।
उन्होंने कहा कि भारत संविधान से चलता है और इस संविधान में कहीं भी अल्पसंख्यक मंत्रालय या अल्पसंख्यक आयोग का ज़िक्र नहीं है।
उपाध्याय ने कहा, “संविधान में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन का ज़िक्र है, और वो सबके लिए बना हुआ है।जब एनएचआरसी है सबके लिए, तो फिर एक अलग से धार्मिक आधार पर कमीशन की क्या ज़रूरत है।”